बार-बार की सूखे की समस्या को देखते हुए भारत सरकार भी कृत्रिम बारिश के
विकल्पों पर गंभीरता से आगे बढ़ रही है। भू-विज्ञान मंत्रालय से संबद्ध
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (आइआइटीएम) ने हाल ही में
इसके लिए अपने शोध के तीसरे और अंतिम चरण की शुरुआत वाराणसी में की है।
आइआइएमटी ने 2003 में आंध्र प्रदेश में इसकी नींव रखी थी। अब वाराणसी में
भी एक बेस स्टेशन बनाया जायेगा, जो मध्य भारत के क्षेत्रों में बादल बनने
की प्रक्रिया, उनके विकास और संघनन में एयरोसॉल की भूमिका का अध्ययन करेगा। दरअसल, इस योजना को सफल बनाने के लिए सबसे पहले देशभर
में बादलों का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करना जरूरी है। आइआइएमटी ने इसके
लिए विशेष उपकरणों से सुसज्जित अमेरिका से विमान मंगाया है। अगले दो वर्ष
तक विमान में लगे 22 उपकरणों की मदद से बादलों का सैंपल इकट्ठा कर उसका
परीक्षण किया जायेगा। लेकिन दिक्कत यह है कि देश में इसके लिए अभी तक कोई
ढांचागत विकास नहीं हो पाया है, न ही तथ्यपरक आंकड़े हैं। इसके अलावा,
विशेषज्ञता की कमी तो है ही।