Tuesday, 11 April 2017

चेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क : कहाँ बंटा होता है मस्तिष्क का सर्वर?


हम रोजाना बहुत से ऐसे काम करते हैं जिनके लिए हमें कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती। जैसे सुबह उठकर ब्रश करना, चाय पीना, अखबार पढ़ना। रोज करने से हमें कुछ कामों की ऐसी आदत पड़ जाती है कि इनमें जरा भी मस्तिष्क नहीं लगाना पड़ता। हम ये काम कैसे, कब करने लगते हैं, हमारे मस्तिष्क के सर्वर में ये बात अच्छे से फीड हो जाती है। कई बार कुछ काम तो ऐसे होते हैं जिन्हें हम आंखें बंद करके भी निपटा सकते हैं जैसे सांस लेना, पानी पीना। मस्तिष्क के भीतर फैले तंत्रिकाओं के जाल, हमारी इन आदतों को काबू करते हैं।
                                वैज्ञानिकों ने हमारे मस्तिष्क के काम करने को दो हिस्सों में बांटा है। चेतन मस्तिष्क या कॉन्शस माइंड और अवचेतन मन। जो काम हम रोजाना करते हैं वो हमारे अवचेतन मन में अच्छे से बैठ जाते हैं। वहीं किसी भी नए काम को करने के लिए हमारे चेतन मस्तिष्क को मेहनत करनी पड़ती है। दुनिया भर में कई वैज्ञानिक ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अवचेतन मस्तिष्क से काम करने की अहमियत हमारे लिए क्या है? हम इसका कैसे फायदा उठा सकते हैं।
                           न्यूरोसाइंटिस्ट डेविड ईगलमैन ने बीबीसी के लिए अभी हाल में इस बारे में एक टीवी श्रृंखला की थी। ईगलमैन ने कप को तरतीब से लगाने में दस साल के रिकॉर्ड होल्डर ऑस्टिन नेबर के साथ मुकाबला किया। इस दौरान दोनों के मस्तिष्क पर ईईजी यानी इलेक्ट्रोएनसेफेलोग्राफी के जरिए नजर रखी जा रही थी। ऑस्टिन ने चुटकी बजाते, महज पांच सेकेंड में कप्स को कई बार तरतीब से लगा दिया। वहीं ईगलमैन को इसके लिए अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ी। इस मुकाबले के दौरान ऑस्टिन का मस्तिष्क एकदम शांत था जबकि ईगलमैन के जेहन में खलबली मची हुई थी। वजह साफ थी। क़रीब तीन साल के अभ्यास से ऑस्टिन के मस्तिष्क को कप्स को तरतीब से लगाने की आदत हो चुकी थी। लिहाजा उसके मस्तिष्क को कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। काम भी चुटकी बजाते हो गया। वहीं ईगलमैन के लिए ये करना बिल्कुल नया तजुर्बा था। इसलिए उनके मस्तिष्क को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी। फर्क ये था कि ऑस्टिन कप सजाने का काम अवचेतन मन से कर रहा था। ईगलमैन यही काम चेतन मस्तिष्क से कर रहे थे। उनके जेहन को अभी इसकी आदत नहीं हुई थी कि वो आंख मूंदकर ये काम कर सकें।
                            रोजमर्रा के बहुत से काम हम ऐसे ही, अवचेतन मस्तिष्क से करते हैं। जैसे कोई बल्लेबाज, तेज रफ्तार बाउंसर को हिट करके छक्का मारता है। क्योंकि अगर खिलाड़ी को इसकी आदत नहीं होगी, वो चेतन मन या चेतन मस्तिष्क से ये काम करेगा तो जब तक उसका हाथ, तेजी से आती गेंद को मारने के लिए उठेगा, तब तक तो गेंद उसका जबड़ा तोड़ चुकी होगी। खिलाड़ियों को इसलिए बार-बार अभ्यास की जरूरत होती है। ताकि उनके मस्तिष्क में खेल खेलने की प्रक्रिया अच्छे से बैठ जाए।
                                  वैसे हम बहुत से ऐसे काम करते हैं जिनके बारे में हमें पता नहीं होता कि ये अवचेतन मस्तिष्क से कर रहे हैं। बहुत से महीन काम हम ऐसी ही मस्तिष्की हालत में करते हैं। जैसे विपरीत लिंग वाले साथी को लुभाने का काम, गणित के सवाल हल करने का काम या अपनी सियासी विचारधारा बनाने का काम। ये सभी अवचेतन मस्तिष्क से ही होता है। इसके लिए हमारे मस्तिष्क को ज्यादा कोशिश नहीं करनी होती।
                               वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर बहस छिड़ी है कि क्या जागृत या चेतन मस्तिष्क में कुछ करने की काबिलियत भी होती है? क्योंकि अक्सर हमारे मस्तिष्क को बहुत चीजों का एहसास तब होता है जब सारे जमाने को खबर हो जाती है। बरसों से डिजाइनर्स और विज्ञापन बनाने वाले, हमारे अवचेतन मस्तिष्क को कंट्रोल करते रहे हैं किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए। उसके प्रति हमारे मन में चाव पैदा करके। इस अवचेतन मस्तिष्की हालत की वजह से ही हम शहर में सावधानी से गाड़ी चलाते हैं, कई बार ज्यादा शराब भी पी जाते हैं। अगर हम अपने मस्तिष्क में कोई भी बात अच्छे से बैठा दें तो आगे चलकर बहुत से फैसले लेने में, कई काम करने में हमें मस्तिष्क नहीं लगाना पड़ेगा। हम ऑटोमैटिक तरीके से वो काम कर डालेंगे। इसका फायदा नशे के शिकार लोगों की लत छुड़ाने में लेने की कोशिश की जा रही है। 
                               इंसानी मस्तिष्क की पड़ताल करने वाले अब इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमारे मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा अवचेतन या नॉन कॉन्शस रहता है। मतलब हमारे शरीर के इस सर्वर में वो बातें डली रहती हैं जो हम आदतन करते हैं। और चेतन मस्तिष्क या जगा हुआ मस्तिष्क, बचा हुआ बेहद छोटा हिस्सा ही होता है। इन बातों का मतलब साफ है। हमें कोई काम अच्छे से करना है तो रोजाना प्रैक्टिस से हमें उसे अपने अवचेतन मन में गहरे बैठा देना होगा। फिर वो काम करने के लिए ज्यादा मस्तिष्क लगाने की जरूरत नहीं होगी।