Sunday 30 April 2017

सामाजिक सुधार आंदोलन ने 19 शताब्दी में स्त्रियों की किस सीमा तक योगदान दिया ?


भारतीय इतिहास में 11वी शताब्दी एक सक्रमणकालीन अवस्था को प्रदर्शित करती है यह वह समय था जब भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग पाश्चात्य विचारो के संपर्क में आ रहा था पाश्चात्य चिंतको द्वारा सामाजिक समस्याओ को उठाया जा रहा था| जेम्स मिल जैसे चिंतक स्त्रियों की समस्याओ पर अत्यधिक बल दे रहे थे ऐसे में भारत भी अछूता ना रहा यहाँ भी सामाजिक सुधर आंदोलन प्रारम्भ हुआ और समाज की शल्य चिकित्सा आरम्भ हु। भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या थी स्त्रियों की गिरती दशा जिसके परिरामस्वरोप्प भारतीय समाज का पतन हो रहा था स्त्रियों प्रमुख समस्याएं थी - सती प्रथा , बाल विवाह, शिशु वध, अशिक्षा, विधवाओं के साथ सामजिक भेदभाव सर्वप्रथम राजा राम मोहन राय द्वारा सती प्रथा का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया यह उनके प्रयासों का परिराम था की १८२९ में सती प्रथा को गैर कानूनी घोसित कर दिया गया स्त्रियों से सम्बंधित एक प्रमुख समस्या थी उनकी अशिक्षा इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम प्रयास इंग्लिश मिशनरियों द्वारा किआ गया तत्पश्चात ईश्वर चंद्र विद्यासागर और डी वि कर्वे जैसे समाज सुधारको ने इस दिशा में सराहनीय योगदान दिया| कर्वे द्वारा एक महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी ईश्वर चंद्र विद्यासागर भारतीय समाज में विधवाओं की दशा देखकर चिंतित थे उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए  प्रयास किया, परिरामस्वरूप १८५६ में विधवा विवाह को मान्यता मिल गयी समाज को प्रोत्साहित करने के लिए विद्यासागर ने अपने पुत्र का विवाह एक विधवा के साथ किआ वही कर्वे ने स्वयं के विधवा से विवाह किआ विधवा विवाह सती प्रथा की एक तार्किक परिणीति थी क्योंकि जब तक विधवाओं की दशा में सुधार ना होता तब तक सती प्रथा को प्रोत्साहन मिलता रहता स्त्रियों से सम्बंधित इन सभी समस्याओं की एक मूल जड़ थी बाल विवाह जिसके परिरामस्वरूप स्त्रियों का समुचित विकास ही नहीं हो पाता था इस सम्बन्ध में केशव राय द्वारा प्रयास किये गए परिरामस्वरूप १८७२ में मैरिज नेटिव एक्ट आया जिससे विवाह के लिए स्त्रियों की एक न्यूनतम अवस्था १२ वर्ष तय की गयी

इस प्रकार हम देखते हैं की सामाजिक सुधार आंदोलन ने स्त्री समस्या को गंभीरता से उठाया परन्तु इन प्रयासों की अभी अपनी एक सीमा थी| यह सभी प्रयास कुछ सामाजिक सुधारको द्वारा किये गए थे इन्हे अभी भी जनसमर्थन प्राप्त नहीं हुआ था पूरी १९वी शताब्दी में मात्रा ३५ विधवा विवाह हुए थे वही सती प्रथा तो आज भी समाज में कई स्थानों पर सम्मानीय मानी जाती है एक सुधारो की एक बड़ी सीमा यह थी की यह सभी प्रयास पुरुषो द्वारा किये गए थे अतः उन्होंने समाज की चौहदी में रह कर ही प्रयास किये हिन्दू सुधारको ने हिन्दू स्त्रियों की बात की परिरामस्वरूप समाज में महिलाये स्वयं में एक वर्ग ना बन पायी जिसका परिराम यह हुआ की हर धरम विशेष में महिलाओ की दशा अलग अलग रही जिन सुधारो के लिए अंग्रेजो ने विधि बनायीं उन्हें समर्थन प्राप्त नहीं हुआ यही वजह थी की १८५७ के बाद अंग्रेजो ने सामाजिक सुधार में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई परन्तु इससे इन सुधारो की महत्ता कम नहीं होती इन्ही के कारण से आने वाले वर्षो में स्त्री समस्या एक प्रमुख विषय रहा तथा उनके सुधार के लिए प्रयास किये जाते रहे